Sunday, September 16, 2007

सुभद्रा कुमारी चौहान - जीवन की कुछ घटनायें: मिला तेज से तेज

दिसम्बर सन् २१ में लक्ष्मण सिंह और सुभद्रा अहमदाबाद कांग्रेस में गये। लौटते समय कुछ दिनों के लिए साबरमती आश्रम में भी रूके। सुभद्रा बापू के दर्शन करने उनकी कुटिया में गयीं जहां कस्तूरबा भी उनके साथ थीं। त्याग और सादगी के आवेश में आकर सुभद्रा, जो कि यों गहनों और कपड़ों को बहुत शौकीन थीं, उन दिनों जबकि उनकी उम्र केवल सोलह-सत्रह साल की थी, एकदम सफेद खादी की बिना किनार की धोती पहनती थीं, उनके हाथ में न तो चूड़ियां होती थीं और न माथे पर बिंदी। ऎसी कम उम्र की लड़की को ऎसे वेश में देखकर बा और बापू ने मन में जाने क्या सोचा होगा। आखिर बापू ने सुभद्रा से पूछ ही लिया--बेन, तुम्हारा ब्याह हो गया है ? सुभद्रा ने कहा, 'हां' और फिर उत्साह में आकर बताया कि मेरे पति भी मेरे साथ आये हैं। इस बात को सुनकर बा और बापू जहां आश्वस्त हुए वहां कुछ नाराज भी हुए। बापू ने सुभद्रा को डांटा-- तुम्हारे माथे पर सिन्दूर क्यों नहीं है ? और तुमने चूड़ियां क्यों नहीं पहनीं ? जाओ कल किनारेवाली साड़ी पहनकर आना।
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'मुकुल' की कविताएं पढ़कर या उसमें उनका चित्र देखकर कोई सज्जन बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने सुभद्रा को एक पत्र लिखा जिसमें उनकी कविता की भूरि-भूरि प्रशंसा थी और इसी तरह की और इस बात का उल्लेख था कि पत्र-लेखक की भी साहित्य में अभिरूचि है और इसी तरह की और भी कुछ सूचनाएं अपने विषय में देते हुए पत्र-लेखक ने अपनी यह इच्छा व्यक्त की थी कि यदि सुभद्रा को आपत्ति न हो तो वे उनसे विवाह करने को उत्सुक हैं!

सुभद्रा को पत्र पढ़कर बहुत हंसी आयी। उन्होंने उत्तर दिया कि
'आपका पत्र पाकर मैं सम्मानित हुई। आपको मेरी कविताएं पसन्द हैं, इसके लिए मैं कृतज्ञ हूं। जहां तक विवाह की बात है तो इस समय मेरे पति जेल में हैं, घर में मैं हूं, मेरी सास हैं और दो बच्चे हैं। यदि इन सब के साथ मुझसे विवाह करने में आपको आपत्ति न हो तो फिर मैं इस विषय पर सोचूंगी'
और साथ में यह भी लिख दिया कि पुस्तक में उनका जो चित्र छपा है वि पांच-छ: वर्ष पहले का है। इस पत्र का जवाब न आना था और न आया पर कुछ दिन इसको लेकर घर में काफी दिल्लगी रही।
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जयपुर में ये लोग किसी साहित्य-प्रेमी के अतिथि थे। एक दिन अपने आतिथेय के साथ ये लोग किसी सभा या गोष्ठी में सम्मिलित होने कोजा रहे थे । रास्ते में किसी मकान में बहुत भीड़-भाड़ देखी, शायद शादी-व्याह का घर था । पुराना कोठीनुमा मकान था । सामने ड्योढ़ी में से दिखा कि भीतर सहन में बाईजी का नाच हो रहा है। शहरों में जहाँ आधुनिक सभ्यता तरह-तरह की वर्जनाओं का पर्याय बन गयी है, ऎसा दृश्य सड१क के किनारे देखने को शायद ही मिलता हो । माँ ने कहकर तांगा रूकवाया, लोग समझे नहीं कि मामला क्या है। वे बोलीं, जरा कुछ देर नाच देख लें तब चलेंगे । उनके इस खिलण्डरेपन को वही समझ सकता था, जो उन्हें निकट से जानता हो । उनके आतिथेय ने पता नहीं उनके बारे में क्या सोचा होगा , शायद यही कि यह देशसेविका, चार-पाँच बच्चों की माँ, विधानसभा की सदस्या और प्रसिद्घ कवियत्री कैसी है जो इस तरह का कौतूहल दिखा रही है, यह तो उसके पद की गरिमा के अनुकूल नहीं । नागपुर के प्रसिद्घ सशस्त्र सत्याग्रह के प्रेरणा-श्रोत जनरल अवारी,जो नागपुर के झण्डा सत्याग्रह में माँ और काका के साथ ही थे, बताते थे कि सुभद्रा के नाम पर देखते-देखते हजारों की भीड़ इकट्ठा हो जाती। और वही सुभद्रा मौका मिलने पर लट्टू भी नचा लेती थीं। काका ने भी कभी नहीं चाहा कि वे अपना सहज स्वभाव छोड़कर कवि या राजनीतिक नेता की गुरूगम्भीर मुद्र अपनायें।
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मां पहली मई की शाम को छोड़ी गयी थी और ४ मई आपरेशन की तारीख तय की गयी थी। बीच में दो दिन छुट्टी के मिलते थे। उन्होंने डाक्टर से कहा कि वे एक बार अपने घर जाना चाहती हैं। डाक्टर ने केवल दो घण्टे के लिए घर जाने की अनुमति दे दी। लेकिन एक बार जब इतनी छूट मिल गयी तो मां ने उनसे कहा कि वे एक सिनेमा भी देखना चाहती हैं, मुक्त होने का कुछ तो सुख उठा लें ! बड़े बेमन से डाक्टर ने उसकी भी आज्ञा दे दी। शाम को मां कुछ देर के लिए घर आयीं और फिर हम सब को साथ लेकर सिनेमा देखने गयीं। लेकिन इतना चलने-फिरने या मुक्त होने की उत्तेजना से वे इतना ज्यादा थक गयीं थीं कि बेहोश हो गयीं। हम लोग मां कु मुंह पर पानी के छीटे मार-कर किसी- किसी तरह उनको होश में लाये और फिर उन्हें लेकर सीधे अस्पताल चले गये।

मिला तेज से तेज
सुभद्रा कुमारी चौहान -बचपन, विवाह।। जबलपुर आगमन, मुश्कलें, और रचनायें।। जीवन की कुछ घटनायें।।

(सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी, इनकी पुत्री, सुधा चौहान ने 'मिला तेज से तेज' नामक पुस्तक में लिखी है। हम इसी पुस्तक के कुछ अंश, हंस प्रकाशन के सौजन्य से प्रकाशित कर रहें हैं। इस चिट्ठी में उनके जीवन की कुछ घटनायें हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान की सारी रचनायें 'सुभद्रा समग्र' में हैं।

इन दोनो पुस्तकों को हंस प्रकाशन १८, न्याय मार्ग, इलाहाबाद दूरभाष २४२३०४ ने प्रकाशित किया है। 'मिला तेज से तेज' पुस्तक के पेपरबैक प्रकाशन का मूल्य ८० रूपये और हार्ड कवर का मूल्य १६० रूपये है। 'सुभद्रा समग्र' पुस्तक के हार्ड कवर का मूल्य ३५० रुपये है। इन दोनो पुस्तकों को आप हंस प्रकाशन से पोस्ट के द्वारा मंगवा सकते हैं।)

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