Tuesday, July 24, 2007

सुरों को जीतने वाला - सुरजीत चटर्जी

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सुरजीत चटर्जी, एक जाने-माने पियानो वादक हैं। १९५० के दशक में इलाहाबाद में जन्में - भारत में मित्रों के बीच दुलाल और अमेरिका में शुरा के नाम से जाने जाते हैं। उनके पिता वकील और मां सगींत प्रेमी थीं। उन्हीं से संगीत की पहली शिक्षा मिली; उन्हीं की प्रेरणा से पियानो सीखना प्रारम्भ किया।

सुरजीत अपने इलाहाबाद के घर में

अपनी प्रारम्भिक शिक्षा इलाहाबाद के संत जोसेफ स्कूल से पूरी की और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक डिग्री लेने के पश्चात, वे दिल्ली स्कूल ऑफ म्युजिक (Delhi School of Music) चले गये। वहीं से, रूस सरकार के द्वारा, छात्रवृत्ति पर, मॉस्को कंजरवेटरी (Moscow Conservatory) में पियानो की संगीत शिक्षा प्राप्त करने गये। ११ साल तक वहां पियानो की शिक्षा प्राप्त कर वे अमेरिका चले गये और वहीं के नागरिक बन गये।


१० साल तक, कैलीफोर्निया, पासाडेना कंजरवेटरी आफ म्युजिक (Pasadena Conservatory of Music) एलऐ स्कूल आफ म्युजिक एण्ड द आर्ट (LA School of Music and the Arts) में संगीत शिक्षक एवं परामर्शदाता के रूप में कार्य किया। वे इस समय, हेस्पेरिया यूनीफाइड स्कूल डिस्ट्रिक्ट (Hesperia Unified School District) में संगीत के प्रोफेसर हैं।

१२ मई २००७ को सुरजीत के विद्यार्थियों के द्वारा कैलीफोर्निया में संगीत संध्या का आयोजन किया गया। प्रोग्राम के बाद अपने विद्यार्थियों के साथ सुरजीत

सुरजीत का पियानो वादन अपने आप में अनूठा है। वे पियानो पर संगीत के हर सुर निकालने में माहिर हैं। पियानो पर दौड़ती हुयी उनकी उंगलियां, मानो मखमली हों। वे पाश्चात्य संगीत में माहिर हैं पर अब उनकी संगीत साधना अपना पूरा चक्र पूरा कर रही है। बचपन में इलाहाबाद से शुरू हुआ पाश्चात्य संगीत का यह सफर, अमेरिका में जाकर वापस भारतीय संगीत में लौट रहा है।

यह वह सुरजीत हैं जो कि हमेशा पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत बजाना पसन्द करते थे। १५ अगस्त १९६९ पर आयोजित समारोह में पियानो पर पाश्चात्य शास्त्रीय वादन के बाद जब उनसे हिन्दी गाने या फिर कुछ हल्का फुल्का बजाने का अनुरोध किया गया तो बहुत आग्रह के बाद डाक्टर 'जिवागो फिल्म' से 'लारास् थीम' सुनाने की कृपा की।

सुरजीत अब हिन्दी गानों को सुनना और बजाना पसन्द करते हैं और खामोशी फिल्म के 'हमने देखी है उन आंखों में महकती खुशबू, हांथ से छू कर इसे रिश्तों का इलजाम न दो' गाने को अपने जीवन का अनुभव ... नहीं, नहीं अपने जीवन का निचोड़ मानते हैं। आप भी इस गाने को, उनसे पियानो पर सुनिये। उनके पियानो वादन के पहले, इसमें इस गाने की दो पंक्तियां भी हैं।

सुनने के चिन्ह ► तथा बन्द करने के लिये चिन्ह ।। पर चटका लगायें।


Hamne Dekhee Hai P...

आप उनके द्वारा बजाये गये पियानो पर परिणीता फिल्म का, 'सूना सूना मन का आंगन, ढूढ़े पायल की छन-छन, सूनी सूनी मन की सरगम, ढूढ़े गीत तेरे हमदम' भी सुन सकते हैं। इसमें भी पहले, इस फिल्म के गाने की दो पंक्तियां हैं।

Soona Man Ka Aanga...

सुरजीत के द्वारा पियानो पर बजाई गयी हिन्दी गानों के धुनों की सीडी, आपको जल्द ही बाजार में मिल सकेगी।

Hailing from a musical family in Allahabad, India, Surojeet (Shura) Chatterji had his first lessons with Naju Shapooyee and later with Hosie Palamkot at the Delhi School of Music. After graduating with honours from the Royal School of Music, London, he became the first Indian musician to be the recipient of a full scholarship from the USSR Government to study at the reputed Moscow Conservatory. He studied there for 11 years under Professor Erena Somordinova and Rudolf Kerer, masters who trace their instructional lineage all the way to Ludwig Van Beethoven.

After having received the highest degree from his Alma Mater, Shura immigrated to Southern California, where he began serving on the faculty of the Pasadena Conservatory of Music, the LA School of Music and the Arts, and for 10 years as music consultant and master teacher to the faculty members of the Ambassador International Cultural Foundation. And since then till the present, Shura is tenured Professor under Hesperia Unified School District.

The amazing and soul stirring performances of Shura’s students and that of his own are to be attributed, as he says, to the meeting of his rich Indian heritage with the great Russian method of teaching – where the individual is persuaded to experience a total physical immersion into the instrument empowering the pianist to express in deepest tones his innermost poetic imaginations. The shoulders, the hands, the fingers, most intimately glide, massage, and blend the melody of the music enabling it to flow on the piano as it were emerging from out of a well trained human voice.

Shura has indeed come full circle from the passion and discipline of western music into the weaving and harmonizing of Indian Dhuns on the piano. Harmonizing as such is an alien and difficult concept to be applied to pure Indian classical music. However, when applied to simpler Indian Dhuns as exemplified by the ingenious abilities of music composers of Indian films, they become marvelous orchestral fusions of the west and the east. Such is what is to be found in piano arrangements of similar Dhuns performed by Shura.

1 comment:

Yunus Khan said...

बधाईयां दीजिये इनको । सुंदर प्रस्‍तुति । भई हम तो पियानो बजाने वाले ब्रायन सिलास को ही जानते थे ।

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