(इस चिट्ठी में सुभद्रा कुमारी चौहान की मृत्यु के बाद आयोजित शोक सभा के बारे में है।)
आयोजकों की प्रबन्ध-पटुता से २७ नवम्बर १९४९ के सबेरे स्मारक समारोह का कार्यक्रम ठीक समय से प्रारम्भ हो गया। महादेवी जी ने मूर्ति का अनावरण किया। फिर सन्देश पढ़ने के बाद आगन्तुक साहित्यकारों के भाषण हुए। प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भदन्त आनन्द कौसल्यायन भी समारोह में आये थे। उन्होंने अपने भाषण में बताया कि अपने विद्यार्थी जीवन में जब वे पंजाब में रहते थे तब उनकी यह अभिलाषा थी कि हाथों में कड़े पहनकर और एक लकड़ी से उन कड़ों को बजाते हुए वे 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली राली थी' गाते हुए गांव-गांव में घूमें, वैसे ही जैसे वहां के लोक-गीत गायक अपने गीतों को गाते हुए घूमते हैं। सुभद्रा जी ने यदि यही एक कविता लिखी होती, और कुछ भी न लिखा होता, तो भी वे अमर हो जातीं।
बहुत से लेखक दूसरे-दूसरे शहरों से भी आये थे। राम कुमार वर्मा, इलाचन्द्र जोशी और हरिवंश राय 'बच्चन ने भी अपने संस्मरण सुनाये। बच्चन जी ने बताया कि उनकी भी जन्मभूमि इलाहाबाद के निहालपुर मुहल्ले के पास है। उन्होंने कहा कि जब एक गांव की कन्या विवाह करके दूसरे गांव को जाती है तो कन्या के सभी गांव वाले उसे अपनी कन्या समझकर, उसके कुशल समाचार दूसरे गांव वालों से जानना चाहते हैं, और उसकी प्रशंशा सुनकर गद्गद् हो उठते हैं।
महादेवी जी अंतिम वक्ता थीं। उन्होंने कहा--
'क्रास्थवेट स्कूल के मैदान में एक पीपल का पेड़ था। उसमें दो ऎसी शाखें थीं कि जिन पर मैं और सुभद्रा बैठा करतीं। वहां बैठकर सुभद्रा कहा करतीं--तुम मेरी तरफ बिना देखे मेरी बात सुनो।
आज भी तो कोई उनकी तरफ देख नहीं रहा था, वे दिखायी कहां पड़ रही थीं ? पर सब ओर से उनकी बातें सुनायी पड़ रही थीं।
'नदियों का कोई स्मारक नहीं होता, दीपक की लौ को सोने से मढ़ दीजिए पर इससे क्या होगा? हम सुभद्रा के संदेश को दूर-दूर तक फैलायें और आचरण में उसके महत्व को मानें, वही असल स्मारक है।'
मिला तेज से तेज
सुभद्रा कुमारी चौहान -बचपन, विवाह।। जबलपुर आगमन, मुश्कलें, और रचनायें।। जीवन की कुछ घटनायें।। महादेवी वर्मा।। सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला।। शोक सभा(सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी, इनकी पुत्री, सुधा चौहान ने 'मिला तेज से तेज' नामक पुस्तक में लिखी है। हम इसी पुस्तक के कुछ अंश, हंस प्रकाशन के सौजन्य से प्रकाशित कर रहें हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान की सारी रचनायें 'सुभद्रा समग्र' में हैं।
इन दोनो पुस्तकों को हंस प्रकाशन १८, न्याय मार्ग, इलाहाबाद दूरभाष २४२३०४ ने प्रकाशित किया है। 'मिला तेज से तेज' पुस्तक के पेपरबैक प्रकाशन का मूल्य ८० रूपये और हार्ड कवर का मूल्य १६० रूपये है। 'सुभद्रा समग्र' पुस्तक के हार्ड कवर का मूल्य ३५० रुपये है। इन दोनो पुस्तकों को आप हंस प्रकाशन से पोस्ट के द्वारा मंगवा सकते हैं।)
3 comments:
बहुत आभार इस आलेख के लिये.
मेरा सौभाग्य कि मैं उन्हीं के शहर जबलपुर से हूँ और यहाँ बफैलो में उनकी सुपुत्री ममता जी के सामने काव्य पाठ करने का अवसर प्राप्त कर चुका हूँ.
आपका लेख पढ़कर बौत अच्छा लगा। फोटू भी बहुत अच्छा लगा। किन्तु आपने इसके विषय में कुछ भी नहीं लिखा है।
अनुनाद जी
सुभद्रा कुमारी चौहान के बारे में सारी चिट्ठियां उनकी पुत्री सुधा चौहान की पुस्तक 'मिला तेज से तेज' से ली गयी हैं और हंस प्रकाशन के सौजन्य से प्रकाशित की गयी हैं। हमारा इसमें कुछ जोड़ना ठीक नहीं होता।
सम्पादक
Post a Comment