{पूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एम.एस.सी. (भौतिक शास्त्र) में दाखिला लिया था। प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैइया) बता रहे हैं कि उन्हें दाखिला कैसे मिला था।
यह लेख, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरातन छात्रों की पत्रिका, Under the banyan tree, के जनवरी १९९०- अप्रैल १९९० के अंक नम्बर १८-१९ में 'अपना विश्वविद्यालय, प्यारा विश्वविद्यालय' नाम के शीर्षक से छपा था। यह लेख रज्जू भैया से की गयी बातचीत पर आधारित था। यहां पर वह लेख उस पत्रिका के सौजन्य से छापा जा रहा है। पिछली कड़ी में हमने इसी पत्रिका से प्रो. हरीश्चन्द्र के बारे में, रज्जू भैया से की गयी बातचीत पर आधारित, लेख छापा था।
आपको इस लेख को कौपी करने, बांटने, या वीकिपीडिया पर डालने की अनुमति है पर अच्छा हो कि यह करते समय आप इसका श्रेय इलाहाबाद पुरातन छात्र संघ इलाहाबाद या पत्रिका Under the banyan tree को दें या इस चिट्ठी का लिंक दे दें।}
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श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एम.एस.सी. के विद्यार्थी रहे हैं। वे १९६२ में यहॉं पर दाखिला लेने के लिये आये और मुझसे मिले। उन्होंने पूना यूनिवर्सिटी से बी.एस.सी. की परीक्षा में ६६% अंक प्राप्त किये थे तथा उनकी दूसरी पोजीशन थी। मैंने उनसे कहा कि हम बाहर के विश्वविद्यालय के तो ७०% से अधिक पाने वाले छात्र को ही लेते हैं। और अपने ही विश्वविद्यालय के प्रथम श्रेणी के लोगों को लेते हैं। ऐसी अवस्था में उनके दाखिले में कठिनाई आयेगी। उन्होंने हंसते हुए कहा कि,
'मैं तो आप ही के शहर का हूं। मैंने कायस्थ पाठशाला में प्रेक्टिकल का अभ्यास करके इण्टरमीडिएट विज्ञान से पास किया। और क्योंकि यहॉं पर मेरे मित्र लोग नहीं थे इसलिये मैं पूना विश्वविद्यालय पढ़ने के लिये चला गया। पूना विश्वविद्यालय तो बड़ी कठिनाई से अंक देता है। मेरी दूसरी पोजीशन होने के बाद भी मुझे ६६% अंक मिले और प्रथम पोजीशन प्राप्त करने वाले को ६७% अंक मिले। मैं यहॉं बड़ी रूचि के साथ पढूँगा।'मैंने कहा,
'ठीक है इतनी रूचि है तो आपको तो जरूर दाखिला देंगे पर मुझे भरोसा नहीं है कि आप एम.एस.सी. कर ले जायेंगे।'उन्होंने कहा,
'आप ऐसा क्यों कहते हैं?'मैंने कहा,
'आप ऐसे घराने के व्यक्ति हैं कि राजनीति आपको जल्दी से खींच लेगी और किसी न किसी कारण से आप चुनाव के चक्र में फंस जायेंगे।'हुआ भी ऐसा ही। उसी साल संतबख्श सिंह, जो उनके भाई थे वे लोकसभा के लिये खड़े हुये और उनके चुनाव प्रचार करने के लिये हमारे विश्वनाथ प्रताप सिंह को जाना पड़ा।
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