Thursday, January 03, 2008

पूर्वी बजाज की स्मृति में

पिछले वर्ष तरकश ने २००६ के उदीयमान चिट्ठाकार का चुनाव तीन श्रेणियों में करवाया था: स्वर्ण, रजत, और कांस्य कलम। उस समय हमने सर्वश्रेष्ट चिट्टाकार को ५०० रुपये तक की हिन्दी की पुस्तकें देने की बात की थी। इस चुनाव में श्री समीर लाल को स्वर्ण, श्री उन्मुक्त और श्री शूएब को रजत, और श्री सागर चन्द नाहर को कांस्य कलम से नवाज़ा गया। हमने वायदे के अनुसार, हिन्दी की पुस्तकें समीर जी को टोरंटो भेजीं थी।

तरकश के द्वारा पुनः चुनाव हो रहा है। इस बार यह दो श्रेणी - पुरुष और महिला श्रेणी में है। महिला श्रेणी में अलग चुनाव की बात, उन्मुक्त जी ने रजत कलम का सम्मान के लिये आभार प्रकट करते समय कही थी। इस बार हमारी तरफ से सर्वश्रेष्ठ महिला चिट्ठाकार को ५०० रुपये की हिन्दी की पुस्तकें पुरुस्कार में देने की बात रहेगी। यह राशि इससे अधिक भी हो सकती है। यह महिला चिट्ठाकार के ऊपर निर्भर रहेगी कि वे इसे किस प्रकार चाहेंगी - हिन्दी की पुस्तकों के रूप में, या नगद, या किसी और रूप में। वे जिस प्रकार से इसे चाहेंगी, हम उसी प्रकार उन्हें देना चाहेंगे।

यह पुरुस्कार पूर्वी बजाज की समृति में रहेगा। पूर्वी बजाज ... यह कौन हैं?


सुश्री रचना बजाज, मूलत: मध्यप्रदेश की हैं। इस समय नासिक में रहती हैं। वे परिवार के साथ ही, देश और दुनिया मे कहाँ, क्या, क्यों और कैसे हो रहा है, थोडा सा समझने की कोशिश करते हुऐ, जो पसंद आता है उस पर अंग्रेजी में 'Flying Hopes' नामक चिट्ठा फरवरी २००६ से और हिन्दी में 'मुझे भी कुछ कहना है...' नामक चिट्ठा अगस्त २००६ से लिखती हैं। यह कहना मुश्किल है कि वे हिन्दी चिट्ठजगत में,
  • अपनी कलात्मक चिट्ठियों के कारण जानी जाती हैं; या फिर
  • दूसरे के चिट्ठियों पर अपनी दिल को छू ले वाली टिप्पणियों के कारण; या फिर
  • पिछले साल की शुरुवात में, हिन्दी चिट्ठाजगत में टैग किये जाने वाले प्रश्नो को बदल देने पर, हिन्दी चिट्ठाकारों को जाल में जकड़ लिये जाने के कारण; या फिर
  • नारद पर विपत्ति के समय श्री जीतेन्द्र चौधरी को लिखी इस ई-मेल के कारण,
    'नारद के लिये कुछ आर्थिक योगदान मै भी करना चाहूँगी। हालाँकि ये घोषणा मुझे परिचर्चा मे करना चाहिये थी, लेकिन चूँकि मै आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नही हूँ, अत: हमेशा ऐसा कर पाउँगी ये नही बता सकती...इसीलिये मेसेज से बता रही हूँ। अभी के लिये १००० रू. (और आगे भी जब तक सम्भव हो सकेगा रू.५०० प्रति वर्ष ) दे सकती हूँ। कहाँ और कैसे देना है कृपया बताएँ।'

रचना जी की दो बेटियां - पूर्वी और निशी। पूर्वी, उनकी बड़ी बेटी, ३१ मई २००७ को इस दुनिया से विदा हो गयी


पूर्वी बजाज: जन्म - १३.१२.१९?? मृत्यु - ३१.०५.२००७

पूर्वी कैसी थी। उसे क्या पसन्द था। वह कैसे रहती थी, कैसे कपड़े पहनती थी - रचना जी के शब्दो में,
'थी सौम्य, शान्त और अति गम्भीर,
आँखों मे डबडब भरा नीर।
थी तुम्हे सदा सादगी पसन्द,
नटने थटने का नही छन्द,
लम्बी चोटी, रेशमी केश।
...
कपडों मे ज्यादा सूती पहना,
गहने का धातु बस सोना,
न 'जन्क फूड' न 'फास्ट फूड',
न चमक दमक, न शोर गुल,
साधा खाना, साधा परिवेश।'

पूर्वी को कैसा जीवन पसन्द था - कह नहीं सकते, उससे कभी मिलना नहीं हो सका पर उसका पसन्दीदा गाना अनाड़ी फिल्म से था। उसके द्वारा संगीतमय किया गया - आप भी सुनिये।






जिसे यह गीत पसन्द होगा वह अपने जीवन में कैसे होगी, किस प्रकार का जीवन पसन्द करती होगी - आप इसका अन्दाज़ा स्वयं लगा लीजिये।

पूर्वी अपनी मां की सहायता तो करती ही थी, मां के शब्दों में,
'मै लिखती, तुमको दिखलाती,
तुम मुँह बिचका कर यूँ कहती-
"ये पन्क्ति यहाँ पर ठीक नही,
हाँ! दूजी पन्क्ति है खूब कही।"
तुम होती थी पहली पाठक,
तुम होती मेरी सम्पादक!
तुमको न भा जाए जब तक,
तुम पास न करती मुझे तब तक।'

दूसरों के लिये भी पूर्वी का व्यवहार अनुकरणीय था,
'उस दिन दुकान मे जब देखा,
दुबला-पतला, नन्हा बच्चा,
सहमा सा था, कुछ सकुचाया,
था डरा हुआ, कुछ घबराया।
मजबूरी मे कर रहा काम,
बचपन उसका था यूँ तमाम,
देख उसे तुम दुखी हुई,
नन्हे दिल मे करुणा उपजी-
"माँ! इसको कुछ पैसे दे दो,
मेरा ये पेय इसे दे दो"
त्याग को तुम हरदम तत्पर,
जैसे हो कोई " सन्त- मदर"!
वो घूँट गले मे ही अटके,
मोती जैसे आँसू टपके।
उस पल ही उस पेय को त्याग दिया,
जीवन भर फिर वो नही छुआ।
जब कर लेती तुम दृढ निश्चय,
फिर ना बदलोगी, ये था तय,
था प्रेम सदा, न कभी द्वेष।'

छोटी बहन निशी से प्यार, तो इन शब्दों में झलकता है,
'रो मत आ चल हम तुम खेलें,
मेरी टॉफी भी तू ले ले।'

पूर्वी अब नहीं है। यह पुरुस्कार उसी की स्मृति में है। यदि तरकश द्वारा महिला चिट्ठाकार का चुनाव हर साल कराया जायगा, तो हमारी तरफ से उसी की स्मृति में यह पुरुस्कार भी हर साल रहेगा।

अन्त में, यह चिट्ठी की समाप्ति करते हुए, पूर्वी की आत्मा की शान्ति के लिये, उसकी याद में यह प्रार्थना - रचना जी के स्वरों में,

Prayer
Prayer.mp3
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चलते - चलते - यह कविता पूर्वी की मां - रचना जी के लिये,

Philosphy of Life....


हमें यह बताने की जरूरत नहीं कि यह किसकी आवाज में है।

रचना जी और पूर्वी के बारे में, श्री अनूप शुक्ल ने भी एक चिट्ठी 'जीवन मे हम सबको यूँ ही बस आना है..' लिखी है।

कॉपीराइट सूचना
इस चिट्ठी पर ऑडियो फाइलें और पूर्वी का चित्र रचना जी की बौद्धिक सम्पदा हैं और उन्हीं के अनुमति से है। आपको इस चिट्ठी पर पूर्वी के चित्र के अतिरिक्त अन्य सामग्री का प्रयोग करने या अपने चिट्ठे पर लगाने की अनुमति है पर पूर्वी के चित्र का प्रयोग करने से पहले रचना जी की अनुमति लेना आवश्यक है।

4 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

रचना जी हिन्‍दी ब्‍लाग की आधार स्‍तम्‍भ है,उनके हिन्‍दी में उनके योगदान को कभी भुलाया नही जा सकता।

हम सदा सर्वदा रचना जी के हर कार्य में सहयोग के लिये उनके साथ है।

संजय बेंगाणी said...

भावभीनी पोस्ट. आँखे नम हो आयी.


आपका सहयोग बना है तो,हर वर्ष चुनाव करवाने का प्रयास रहेगा.

सागर नाहर said...

पोस्ट में मैने अपना नाम पढ़ानाहर चन्द सागर पढ़ा तो मुस्कुराहट आ गई, पर आगे बढ़ते बढ़ते आँखें नम हो गई।

Anonymous said...

सम्पादक जी, क्या कहूँ?? सूझता ही नही...मुझे नही पता था कि शब्दों से भी ऐसे रिश्ते बन जाया करते हैं... पूर्वी के और मेरे लिये आपके इतने स्नेह से मै अभिभूत हूँ...मेरे परिवारजनो और कई मित्रों ने इस लेख को पढा है..उन सबकी और मेरी तरफ से ापका और आपके ट्र्स्ट का बहुत धन्यवाद...

@ महाशक्ति, सन्जय भाई और सागर जी आपके स्नेह के लिये भी धन्यवाद.

मेरे और इस वेब साइट के बारे में

यह सेवा, न्यास द्वारा, हिन्दी देवनागरी (लिपि) को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गयी है। मैं इसका सम्पादक हूं। आपके विचारों और सुझावों का स्वागत है। हम और भी बहुत कुछ करना चाहते हैं पर यह सब धीरे धीरे और इस पहले कदम की प्रतिक्रिया के बाद।