आने वाली कुछ चिट्ठियों में, हम इसी पुस्तक के कुछ अंश, हंस प्रकाशन के सौजन्य से प्रकाशित करेंगे।
सुभद्रा कुमारी चौहान का बचपन इलाहाबाद में बीता और पढ़ाई इलाहाबाद के क्रास्थवेट स्कूल में। यहां आपकी मित्रता महादेवी वर्मा से हुई।
सुभद्रा कुमारी चौहान, चार बहने और दो भाई थे। भाइयों में से एक राजबहादुर सिंह (रज्जू भैइया) थे। आपकी शादी लक्षमण सिंह के साथ हुई थी। इस चिट्ठी में उनके बचपन और लक्षमण सिंह के साथ विवाह की चर्चा है।}
चारों बहनों में रानी बड़ी होने के अनुरूप ही अधिक गम्भीर और शान्त थीं। सुन्दर बहुत ही मीठे स्वभाव की, स्नेही और सन्तोषी लड़की थी। सुभद्र बहुत चंचल थीं। जो बात उसे पसन्द न आये उसके खिलाफ विद्रोह करने में उसको देर न लगती। कमला सबसे छोटी थी। सब बहनों के दुलार ने उनके व्यक्तित्व को जैसे छा लिया था। यों तो चारों बहनों में भी लड़ाई कम ही होती थी पर सुन्दर और सुभद्रा में विशेष रूप से पटती थी। दोनों सदा साथ-साथ रहतीं, साथ-साथ खाने बैठतीं। गोमती भी साथ रहती थी। पीने का पानी या तो सुनदर रखें या गोमती। सुभद्रा पानी कभी न रखती पर चट से उठाकर पी जाती थी। एक बार सुन्दर बिगड़ गयीं, बोलीं, 'यह पानी रखती तो नहीं है पर पी लेती है,' और उठाकर भरा लोटा सुभद्रा पर उलट दिया। सुभद्रा गुस्सैल तो थी ही, दबना भी नहीं जानती थी; उसने भी अपने हाथ का गिलास चट से सुन्दर पर उडेल दिया। दोनों बहनें भीग गयीं। लेकिन उसे ठण्डे पानी ने लड़ाई को भी ठण्डा कर दिया।
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यहीं इलाहाबाद में पढ़ते हुए लक्ष्मण सिंह की पहचान राजबहादुर सिंह से हुयी और धीरे-धीरे उनका निहालपुर आना-जाना भी शुरू हुआ।
लक्ष्मण सिंह बहुत साफ रंग के सुरूप मॅझोले कद के आदमी थे। रज्जू भैया को यह लड़का सुभद्रा के लिये पसन्द आया। उनको मालुम था कि यह लड़का गरीब घर का है। अपनी मेहनत से ट्यूशन करके वह अब तक पढ़ता आया है और अब भी अपनी हिम्मत से ही आगे पढ़ रहा है। रज्जू भैया ने भी ट्यूशनों के सहारे ही पढ़ाई की थी, इसलिए यह उनकी दृष्टि में कोई अवगुण नहीं था। अब तक पर्दें के बन्धन भी कुछ-कुछ ढीले हो गये थे। हो सकता है, लक्ष्मण सिंह ने कभी सुभद्रा को देखा भी हो, उसकी प्रशंसा तो जैसे उन्होंने सुन ही रखी थी। एक बार जब लक्ष्मण सिंह निहालपुर गये, तो रज्जू भैया ने अपनी मां और भौजी से भी कहा कि लड़का देख लो। लक्ष्मण सिंह जब उन लोगों के सामने पहुंचे तो लाज के मारे उनका गोरा चेहरा एकदम लाल पड़ गया। दीदी और भौजी को भी लक्ष्मण सिंह अच्छे लगे, बस उनके मन में यही खटक थी कि वे बहुत दूर, खण्डवा के रहने वाले थे। अब निहालपुर लक्ष्मण सिंह की भावी ससुराल थी। वे जब भी वहां जाते, उनके सारे मित्र उनका राजसी ठाठ बना देते। कोई अपना बढ़िया जयपुरी साफा बांध देता, कोई नया कोट पहना देता और कोई अपना पालिश किया हुआ जूता। उनके शरीर पर कोई भी पुराना घिसा-पिटा कपड़ा नहीं रहने पाता। वे चाहे जितना भी विरोध करें पर इन सब तैयारियों के बिना वे निहालपुर नहीं जा पाते थे।
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यों सुभद्रा जैसी सुनदर, गुणसम्पन्न और तेजस्विनी लड़की के लिए पैसे वाले वर का भी अभाव नहीं था। रज्जू भैया की ही मित्रतंडली में अलीगढ़ के जमींदार घराने के एक बैरिस्टर साहब थे। वे एक बार सुभद्रा से विवाह करने की इच्छा व्यक्त कर चुके थे पर उनकी उम्र कुछ अधिक थी। रज्जू भैया अपनी सुकुमारी सुरूपा बहन सुन्दर का विवाह अधिक उम्र के वर से करने की ग्लानि अभी तक मन से निकाल नहीं पाये थे। सुभद्रा उनकी बहुत प्यारी बहन थी और वह स्वभाव से ही विद्रोहिणी थी। उसे उसके समान ही उदार विचारों वाला साहसी वर चाहिए था। रज्जू भैया को लक्ष्मण सिंह में अपनी बहन के अनुरूप गुण दिखायी पड़ें और उन्हें निश्चय करने में देर न लगी।
राजबहादुर सिंह ने अपने संस्मरण में एक जगह लिखा है कि 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कानवोकेशन के समय क्रास्थवेट गवर्नमेन्ट स्कूल की तरफ से सिनेट हाल में एक समारोह हुआ, जिसमें मिस मानकर का भाषण हुआ। एक और वक्ता का भी भाषण हुआ; जो कन्या इस कार्य के लिए चुनी गयी थी वह सुभद्रा थी। सुभद्रा के भाषण से लोग अत्यन्त प्रभावित हुए। यह सन् १६-१७ की बात होगी। उस समय मैं अध्यापक था। सुभद्रा की सूरत-शकल से लोग पहचान गये कि वह मेरी बहन है। उन्होंने आकर मुझे बहुत बधाई दी।'
एक दिन रज्जू भैया, लक्ष्मण सिंह और अपने एक मित्र के साथ क्रास्थवेट स्कूल की हेडमिस्ट्रेस मिस मानकर से मिलने के लिए गये। उन्होंने बातों के प्रसंग में मिस मानकर को बताया कि लक्ष्मण सिंह से सुभद्रा का विवाह तय हो गया है। मिस मानकर सुभद्रा को बहुत मानती और प्यार करती थीं। उन्होंने राजबहादुर सिंह से कहा कि आप इस लड़की का विवाह न करें, यह तो एक ऎतिहासिक लड़की होगी। इसका विवाह करके आप देश का बड़ा नुकसान करेंगे। मिस मानकर लक्ष्मण सिंह को जानती नहीं थीं, अन्यथा वे समझ जातीं कि समानधर्मा दो व्यक्ति एक दूसरे के लिए बाधक नहीं प्रेरक बन जाते हैं।
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शादी कराके बारात वधू को लेकर विदा हुई। इलाहाबाद से खण्डवा तक का लम्बा रास्ता था और सन् १९१९ में चलने वाली रेलेगाड़ी थी जिसकी धीमी गति के कारण रास्ता और लम्बा हो जाता होगा। इटारसी स्टेशन पर गाड़ी शायद घण्टा भर रूकती थी। लक्ष्मण सिंह को बरातियों के बीच, 'जिमि दशनन बिच जीभ बिचारी' जैसी सिकुड़ी-सिमटी बैठी सुभद्रा पर शायद तरस आ गया। उसे लेकर वे प्लेटफार्म पर उतर गये और मजे से उसके एक-दो चक्कर लगाये। उनके बड़े भाई उमराव सिंह इस विवाह से यों ही असन्तुष्ट थे। एक तो छोटे भाई ने अपने मन से शादी तय कर ली, फिर शादी में न पर्दा किया गया और न लेन-देन, नेग-व्यवहार की ही कोई रस्म की गयी। ऎसी अजीब शादी उन्हें बिल्कुल पसन्द नहीं आयी, और अब ऊपर से यह बदतमीजी कि बरात लेकर घर भी नहीं पहुंचे और बहू के साथ घूमना शुरू कर दिया! ऎसी बेशर्मी वे अपने घर में नहीं चलने देंगे! खण्डवा पहुंचने तक वे किसी तरह अपने को वश में किये रहे, लेकिन वहां पहुचने पर वे दूसरे बरातियों से पहले ही घर जा पहुंचे और हाथ में डंडा लेकर दरवाजे पर खड़े हो गये। उनका हुकुम था कि पहले बहू घूंघट निकालेगी, तब घर के अन्दर घुसने पायेगी। हो सकता है कि लक्ष्मण सिंह के कुछ बोलने के पहले ही सुभद्रा ने इस अशोभन प्रसंग को समाप्त करने के लिए घूंघट निकाल लिया हो। लेकिन रूढ़ियों से उनका यह टकराव जो ससुराल की देहलीज से शुरू हुआ वह आजीवन चलता रहा। उनका ये कभी-कभी का झुकना बेंका लचीलापन था, जो उसे आंधी में टूट जाने से तो बचाता है, पर अपनी जगह दृढ़ता से खड़ा रखता है। उन दिनों पर्दा न करना कितनी बड़ी बात होगी कि लक्ष्मण सिंह की शादी के तीन-चार दिन बाद जब उनके मित्र बाबूलाल तिवारी कहीं बाहर से खण्डवा लौटे तो उन्होंने घर-घर में यह चर्चा सुनी कि ये लक्ष्मण जाने कैसी औरत ब्याह लाया है जो मुंह उघाड़े घूमती है।
मिला तेज से तेज
सुभद्रा कुमारी चौहान -बचपन, विवाह
8 comments:
पुस्तक के अंश यहाँ उपलब्ध कराने का शुक्रिया !
बहुत बहुत धन्यवाद
हृदय से आपका आभार, ऐसे ही कंटेंट उपलब्ध कराते रहें।।शुभकामनाओं सहित धन्यवाद।।
कोटिशः धन्यवाद।
बहुत - बहुत धन्यवाद ।
बहुत ही अच्छी किताब है, मैंने सुभद्रा कुमारी चौहान पर शोध किया है, और इस किताब से मुझे बहुत सहायता मिली थी, यह किताब सुधा चौहान ने इसलिए लिखी थी, जिससे कि लोग जान जाए कि उनकी मां का और पिताजी का दर्द क्या था, क्यों वह अवसाद की शिकार हो गई थी आजादी मिलने पर, कारक उन्होंने बताया है कि वह यह देखकर बहुत व्यथित हो गई थी कि देश स्वार्थी तत्वों के हाथ में जा रहा है, सुधा चौहान प्रेमचंद की बहू थी
क्या आपकी जानकारी में सुभद्राजी का जन्म समय दिनांक है? यदि हो कृपया बताएं
मुझे उबके बारे में व्यक्तिगत ज्ञान नहीं है, परन्तु विकिपीडिया में उनकी जन्मतिथि १६ अगस्त, १९०४ इलाहाबाद लिखी है।
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